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Best व्यथित Shayari, Status, Quotes, Stories

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अम्बुज बाजपेई"शिवम्"

आज भारत मां भी अश्रु बहाई होगी,
अंतर्मन में चिल्लाई होगी।
जो आयु में इतना वृद्ध है,
कैसे लाठी खाई होगी?
अगर दोष था तो न्यायालय जाते,
न्याय हेतु अर्जी लगवाते।
स्वयं न्यायधीश बन प्रहार किया,
ये द्वेषाग्नि किसने जलाई होगी?
संदेह मात्र में मृत्यु बांट दी,
क्या सच में दया न आई होगी?
वे साधू थे संन्यासी थे,
त्याग का व्रत ले बैठे थे,
ये सोच भी लिया था तुमने कैसे,
कि उन्होंने वस्तु चुराई होगी?
है मानवता के ठेकेदारों,
अमानव बन क्या तुमको लाज न आई होगी?
ये प्रश्न अब उठता ही रहेगा।
जब तक न निष्पक्ष सुनवाई होगी।
ये गांठ बांध लो अंतर्मन में,
जो शस्त्र उठा अब रण में,
तो अंतिम यही लड़ाई होगी। #व्यथित #द्रवित 
#justiceforsadhu 
#yqbaba #yqdidi

Sudipta Mazumdar

मलंग

राधे राधे   #व्यथित इंसान
बे मौसम बारिश,
जरा देखना तो।
बारिश की बूंदे ही है न, कही ऊपर वाले के आशू तो नहीं निकल गए हमारे तकलीफों को देख कर।
बेशक मै भी रोता तेरी तकलीफों पर,अगर ये बेवजह होती।
ये तेरे ही घमंड कि सजा है।
अभी भी वक्त है,सम्भल जाओ।
#परमात्मा

©neeraj rai #कर्म

#Krishna

Rishabh Kumar Jha

#व्यथित मन...

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Amit Tripathi

मैं सृजन की खेती करता कविता के पौध उगाता हूँ अंतर्वेदना के बीजों से छंदो के फूल खिलाता हूँ तुमने तो ख़ुशियाँ लिखी और विजयोत्सव के गान लिखे मैं वेदना लिखता हूँ और पीड़ा के गीत सुनाता हूँ

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मैं सृजन की खेती करता
कविता के पौध उगाता हूँ
अंतर्वेदना के बीजों से
छंदो के फूल खिलाता हूँ
तुमने तो ख़ुशियाँ लिखी
और विजयोत्सव के गान लिखे
मैं वेदना लिखता हूँ और
पीड़ा के गीत सुनाता हूँ

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 1 - जिन्हें दोष नहीं दीखते 'आप निर्दोष हैं। आराध्य का आदेश पालन करने के अतिरिक्त आपके पास ओर कोई मार्ग नहीं था।' आचार्य शुक्र आ गये थे आज तलातल में। पृथ्वी के नीचे सात लोक हैं - अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल , रसातल और पाताल। इनमें तीसरा लोक सूतल भगवान् वामन ने बलि को दे रखा है। उसके नीचे अधोलोंको का मध्य लोक तलातल मायावियों के परमाचार्य परम शैव असुर-विश्वकर्मा दानवेन्द्र मय का निवास है। सुतल में बलि की प्रतिकूलता का प्रयत्न करने वाले असुर

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
1 - जिन्हें दोष नहीं दीखते

'आप निर्दोष हैं। आराध्य का आदेश पालन करने के अतिरिक्त आपके पास ओर कोई मार्ग नहीं था।' आचार्य शुक्र आ गये थे आज तलातल में। पृथ्वी के नीचे सात लोक हैं - अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल , रसातल और पाताल। इनमें तीसरा लोक सूतल भगवान् वामन ने बलि को दे रखा है। उसके नीचे अधोलोंको का मध्य लोक तलातल मायावियों के परमाचार्य परम शैव असुर-विश्वकर्मा दानवेन्द्र मय का निवास है। सुतल में बलि की प्रतिकूलता का प्रयत्न करने वाले असुर

sanskriti

कविताएं सिर्फ़ शब्दों का समागम नहीं होती, समागम होती हैं, किसी व्यथित मन की भावनाओं का, किसी छोटे बच्चें की किलकारी का, किसी राह चलती अंजान मुस्कान की, किसी चाय के दुकान की| कविताएं उकेरती है, उन भावनाओं को बाहर, जो दिल की बंजर ज़मी में मानो "दर्द" नामक हिमालय पहाड़ से दबा है| कविताएं बोलती भी है,

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कविताएं सिर्फ शब्दों का समागम नहीं होती|

(पूरी रचना पढ़े शीर्षक में) कविताएं सिर्फ़ शब्दों का समागम नहीं होती,
समागम होती हैं, किसी व्यथित मन की भावनाओं का,
 किसी छोटे बच्चें की किलकारी का,
किसी राह चलती अंजान मुस्कान की,
किसी चाय के दुकान की|
कविताएं उकेरती है, उन भावनाओं को बाहर,
जो दिल की बंजर ज़मी में मानो "दर्द" नामक हिमालय पहाड़ से दबा है|
कविताएं बोलती भी है,

Poetry with Avdhesh Kanojia

गुणवान वही कहलाता है

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गुणवान वही कहलाता है
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परपीड़ा से द्रवित, व्यथित होने वाला
मानव असली कहाता है।
जो सबको हो प्रिय, सबका दिल जीते
गुणवान वही कहलाता है।।

देश पर सर्वस्व समर्पण, को रहे तैयार जो
हिंदुस्तानी वही कहाता है।
कल्याण समाज का, खूब करे जो
प्रेम की धार बहाता है।
गुणवान वही कहलाता है।।

एकता के सूत्र में, पिरोए सबको जो
सबको गले लगता है।
दुर्भाग्यपूर्ण प्रथाओं को, भेदभाव की लताओं को
हो निर्भीक हटाता है।
गुणवान वही कहलाता है।।

नारी का सम्मान करे, आदर करे बड़ों का
बातें जो सत्य बताता है।
मिलता है जिसे, प्रेम हर एक का
धनवान वही कहलाता है।
गुणवान वही कहलाता है।।

साहित्य संगीत कला, से जिसका जुड़ाव
प्रतिभाशाली वो कहाता है।
चारों दिशाओं में, विश्व भर की हवाओं में
भारत का ध्वज लहराता है।
गुणवान वही कहलाता है।।


परपीड़ा से द्रवित, व्यथित होने वाला
मानव असली कहाता है।
जो सबको हो प्रिय, सबका दिल जीते
गुणवान वही कहलाता है।।

✍️अवधेश कनौजिया



 #NojotoQuote गुणवान वही कहलाता है

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 14 - कोप या कृपा 'मातः!' बड़ा करुण स्वर था हिमभैरव का। यह उज्जवल वर्ण, स्वभाव से स्थिर-प्रशान्त, यदा-कदा ही क्रुद्ध होने वाला रुद्रगण बहुत कम बोलता है। बहुत कम अन्य गणों के सम्पर्क में आता है। उग्रता की अपेक्षा सौम्यता ही इसमें अधिक है। साम्बशिव की एकान्त सेवा और स्थिर आसन किंतु जब इसे क्रोध आता है - अन्ततः भैरव ही है, पूरा प्रलय उपस्थित कर देगा। किंतु आज यह बहुत ही व्यथित जान पड़ता है। 'तुम इतने कातर क्यों हो वत्स?' जगदम्बा शैलसुता ने अनुक

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
14 - कोप या कृपा

'मातः!' बड़ा करुण स्वर था हिमभैरव का। यह उज्जवल वर्ण, स्वभाव से स्थिर-प्रशान्त, यदा-कदा ही क्रुद्ध होने वाला रुद्रगण बहुत कम बोलता है। बहुत कम अन्य गणों के सम्पर्क में आता है। उग्रता की अपेक्षा सौम्यता ही इसमें अधिक है। साम्बशिव की एकान्त सेवा और स्थिर आसन किंतु जब इसे क्रोध आता है - अन्ततः भैरव ही है, पूरा प्रलय उपस्थित कर देगा। किंतु आज यह बहुत ही व्यथित जान पड़ता है।

'तुम इतने कातर क्यों हो वत्स?' जगदम्बा शैलसुता ने अनुक


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