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भुवनेश शर्मा
जगत की जननी है वो घरों की रोशनी है वो ब्रह्मांड की दिव्य शक्ति है वो संस्कारों का भंडार हैं वो संसार में परिवर्तन का पहलू है वो क्रोध का सागर भी है वो स्नेह का विश्वास भी है वो रिश्तों की मिठास है वो जगदंबा का अवतार है वो प्रकृति का आधार है वो महान है वो... नारी ❣️🙏 प्रियतम #नारी #जगदम्बा #शक्ति #नारायणी #जगतजननी #प्रेम #जीवनधारा #जीवन_का_सत्य ❣️❣️😊😊🙏🙏🙏
CHOUDHARY HARDIN KUKNA
अभिजित त्रिपाठी
हल्दी घाटी के भीषण रण में, राणा निर्द्वंद्व घूमते थे। जिधर भी चेतक मुड़ जाता, लाशों के ढेर झूमते थे। मानसिंह बस एक वार में, होश गंवाकर भागा। अंत युद्ध का निकट आ गया, तब तंद्रा से जागा। सेना को ललकार लगाता, बहलोल खान तब आया। उसने राणा पर वार किया, और पूरा जोर लगाया। एक वार में दो कर दिया उसे, जब राणा को रोष हुआ। हल्दीघाटी में जोरों से, जय जगदम्बा उद्घोष हुआ। ©अभिजित त्रिपाठी #हल्दीघाटी #जगदम्बा #रण #चेतक #दो #रोष #जय #उद्घोष #राणा #hills
_PsychoWriter2408_
दर बदर भटक कर तेरे दर पर आया हूँ, माँ मैं तुझसे आज कुछ माँगने आया हूँ, होगा भूखा पूरा देश, पर नसीब मुझे रोटी नहीं, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी, पर मुझपर तेरी नजर नहीं, क्या गुन्हा है मेरा, कि तुझे चढावा नहीं चढ़ाया, ध्यान से देख ले माँ, मुझसे जादा तेरे आगे किसीने सर नहीं झुकाया..! #इश्क़_शयाहिं नवरात्रि #माँ #जगदम्बा 🙏
नवरात्रि #माँ #जगदम्बा 🙏 #इश्क़_शयाहिं
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 7 - शरीर अनित्य है लोग पागल कहते हैं वैद्यराज चिन्तामणिजी को, यद्यपि सबको यह स्वीकार है कि उनके हाथ में यश है। नाड़ीज्ञान में अद्वितीय हैं और उनके निदान में भूल नहीं हुआ करती। वे जब चिकित्सा करते हैं, मरते को जीवन दे देते हैं; किंतु अपने पागलपन से उन्हें जब अवकाश मिले चिकित्सा करने का। इतना निपुण चिकित्सक - उसके हाथ में लोहे को सोना करने वाली विद्या थी। वह अपना व्यवसाय किये जाता - तो लक्ष्मी पैर तोड़ उसके घर में बैठने को प्रस्तुत कब नहीं थ
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 2 - मा कर्मफलहेतुर्भूः 'आप रक्षा कर सकते हैं - आप बचा सकते हैं मेरे बच्चे को। वह वृद्धा क्रन्दन कर रही थी।' आप योगी हैं। आप महात्मा हैं। मेरे और कोई सहारा नहीं है।' उस वृद्धा का एकमात्र पुत्र रोगशय्या पर पड़ा था। आज तीन महीने हो गये, कुछ पता नहीं चलता कि उसे हुआ क्या है। उसे भूख लगती नहीं, मस्तक में भयंकर पीड़ा होती है। पड़े-पड़े कराहता तो क्या, आर्तनाद किया करता है।
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 14 - कोप या कृपा 'मातः!' बड़ा करुण स्वर था हिमभैरव का। यह उज्जवल वर्ण, स्वभाव से स्थिर-प्रशान्त, यदा-कदा ही क्रुद्ध होने वाला रुद्रगण बहुत कम बोलता है। बहुत कम अन्य गणों के सम्पर्क में आता है। उग्रता की अपेक्षा सौम्यता ही इसमें अधिक है। साम्बशिव की एकान्त सेवा और स्थिर आसन किंतु जब इसे क्रोध आता है - अन्ततः भैरव ही है, पूरा प्रलय उपस्थित कर देगा। किंतु आज यह बहुत ही व्यथित जान पड़ता है। 'तुम इतने कातर क्यों हो वत्स?' जगदम्बा शैलसुता ने अनुक
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 9 - देखे सकल देव 'भगवन! मैं किसकी आराधना करूं!' वेदाध्ययन पूर्ण किया था उस तपस्वी कुमार ने महर्षि भृगु की सेवा में रहकर। महाआथर्वण का वह शिष्य स्वभाव से वीतराग, अत्यन्त तितिक्षु था। उसे गार्हस्थ्य के प्रति अपने चित्त में कोई आकर्षण प्रतीत नहीं हुआ। 'वत्स! तुम स्वयं देखकर निर्णय करो!' आज का युग नहीं था। शिष्य गुरुदेव के समीप गया और उसके कान में एक मन्त्र पढ दिया गया। वह अपने गुरुदेव के सम्प्रदाय मे दीक्षित हो गया। यह कौन सोचे कि उस जीव का भ
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