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MSW Sunil Saini CENA
हरियाणवी गीत: देइये ना उलाहना गायक: डॉ० सुनील सैनी VLDA गीतकार: सुनील सैनी "सीना" plz support #लव
read moreManish Kumar
बाबा भोला इन्सान न जन्म देण आल टेम दिल दो दे देइ ये किस्मत म बेसक धोखा मिल ज पण प्यार आला धोखा जिण न देता #nojoto #bhawan #dard #dil #dhokha बाबा भोला इन्सान न जन्म देण आल टेम दिल दो दे देइ ये किस्मत म बेसक धोखा मिल ज पण प्यार आला धोखा जिण न देता
Vikas Sharma Shivaaya'
बृहस्पतिदेव का मूल मंत्र :- ॐ बृं बृहस्पतये नम: रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ, जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ. रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं, सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा...! 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' बृहस्पतिदेव का मूल मंत्र :- ॐ बृं बृहस्पतये नम: रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ, जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ.
बृहस्पतिदेव का मूल मंत्र :- ॐ बृं बृहस्पतये नम: रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ, जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ. #समाज
read moreHINDI SAHITYA SAGAR
अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुनो री धनियाँ, सुनो री सखियाँ, सुनो री धनियाँ, ई जुरियाँ झौआ म रखिके -2 अउ झौवा मूड़ें म रखिके -2 चल जइहैं बिन इंडुरियाँ, धनियाँ लइ जइहैं जुरियाँ। बंधन लागी धनवा की जुरियाँ.. लेहे वाले ख्यातन मइहाँ, सोंधे-सोंधे ब्वादन मइहाँ, जन-मंजूरन पीछे-पीछे, बिथरा देइहैं ई जुरियाँ, बंधन लागी धनवा की जुरियाँ। -शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR #Happy अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुन
#Happy अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुन #Poetry #hindisahityasagar
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अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुनो री धनियाँ, सुनो री सखियाँ, सुनो री धनियाँ, ई जुरियाँ झौआ म रखिके -2 अउ झौवा मूड़ें म रखिके -2 चल जइहैं बिन इंडुरियाँ, धनियाँ लइ जइहैं जुरियाँ। बंधन लागी धनवा की जुरियाँ.. लेहे वाले ख्यातन मइहाँ, सोंधे-सोंधे ब्वादन मइहाँ, जन-मंजूरन पीछे-पीछे, बिथरा देइहैं ई जुरियाँ, बंधन लागी धनवा की जुरियाँ। -शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुनो री धनि
अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुनो री धनि #Poetry #hindisahityasagar #poetshailendra
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अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुनो री धनियाँ, सुनो री सखियाँ, सुनो री धनियाँ, ई जुरियाँ झौआ म रखिके -2 अउ झौवा मूड़ें म रखिके -2 चल जइहैं बिन इंदुरियाँ, धनियाँ लइ जइहैं जुरियाँ। बंधन लागी धनवा की जुरियाँ.. लेहे वाले ख्यातन मइहाँ, सोंधे-सोंधे ब्वादन मइहाँ, जन-मंजूरन पीछे-पीछे, बिथरा देइहैं ई जुरियाँ, बंधन लागी धनवा की जुरियाँ। -शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुनो री धनि
अवधी लोकगीत - धनवा की जुरियाँ बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। बंधन लागी, हाँ हाँ..बंधन लागी। धनवा की जुरियाँ... सुनो री सखियाँ, सुनो री धनि #Hindi #poem #कविता #hindi_poetry #hindi_shayari #hindisahityasagar #poetshailendra
read moreDivyanshu Pathak
ऐसा केवल हमारे अहम के कारण होता है।जब हम सोचते हैं कि बाक़ी सब बेबकूफ़ हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है --- "I am is better than any other" मेरे
ऐसा केवल हमारे अहम के कारण होता है।जब हम सोचते हैं कि बाक़ी सब बेबकूफ़ हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है --- "I am is better than any other" मेरे #yqdidi #YourQuoteAndMine #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #ख़यालोंकीउथलपुथल #KKसवालजवाब #KKसवालजवाब40
read morevinay vishwasi
मानऽ ए भईया मानऽ काहाना हामार। नाया जुग में चलऽ अब शहर बाजार। गाँव में होत बाटे देखऽ अब दुर्गतिया। शहर में चमकत बाटे बिजुली के बतिया। होतही साँझ घारवा हो जाता आन्हार। मानऽ ए भईया मानऽ काहाना हामार। नाया जुग में चलऽ अब शहर बाजार। सुनऽ ए बाबू सुनऽ बतिया हामार। बुझऽ ना तूँ अब हमके एतनो गावांर। हमहूँ जानिलाँ बाबू शहरिया के बतिया। डी एम कलेक्टर बाने हमरो संघतिया। गऊँवो में अब लउकत बाटे बिजुली के तार। सुनऽ ए बाबू सुनऽ बतिया हामार। बुझऽ ना तूँ अब हमके एतनो गावांर। शहरे में बाटे भईया सब सुख के साधानावा। खुश होइ जाइ तहरो देखि के मानावा। छोड़ि के सब चलऽ आपन घर- बार। मानऽ ए भईया मानऽ काहाना हामार। नाया जुग में चलऽ अब शहर बाजार। अपनो तऽ बाटे बाबू बड़ी खेती-बरिया। कइसे सब छोड़िके जइबऽ बोलऽ शहरिया। माई बाप होइ जइहें अपनो लाचार। सुनऽ ए बाबू सुनऽ बतिया हामार। बुझऽ ना तूँ अब हमके एतनो गावांर। नाहीं छुटि पइहें भईया बाप महतरिया। भलहीं छुटि जाव ई सपना शहरिया। मिटे नाहीं देइब हम आपन संसकार। मानि हम गइनी अब बतिया तोहार। #भोजपुरी #गाँवशहर #विश्वासी मानऽ ए भईया मानऽ काहाना हामार। नाया जुग में चलऽ अब शहर बाजार। गाँव में होत बाटे देखऽ अब दुर्गतिया। शहर में चमकत
Vikas Sharma Shivaaya'
ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट: ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता है, वहां कभी भी कोई अनिष्ट नहीं होता। खुशहाली और सकारात्मकता का माहौल हर तरफ रहता है। शत्रु और रोगों पर विजय- ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा। "सुन्दरकांड" सुन्दरकांड में 526 चौपाइयाँ, 60 दोहे, 6 छंद और 3 श्लोक है। सुन्दरकांड में 5 से 7 चौपाइयों के बाद 1 दोहा आता है। हनुमानजी वानरों को समझाते है- जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥ तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥ जाम्बवान के (सुन्दर, सुहावने) वचन सुन कर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे और हनुमानजी ने कहा की – हे भाइयो!आप लोग कन्द, मूल व फल खाकर समय बिताना, औरतब तक मेरी राह देखना, जब तक कि मैं सीताजी का पता लगाकर लौट ना आऊँ॥1॥ श्रीराम का कार्य करने पर मन को ख़ुशी मिलती है- जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥ यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥2॥ जब मै सीताजीको देखकर लौट आऊंगा,तब कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥यह कहकर और सबको नमस्कार करके,रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर,प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले 2॥ हनुमानजी ने एक पहाड़ पर भगवान् श्रीराम का स्मरण किया- सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥ बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥3॥ समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था। हनुमान् जी खेल से ही कूद कर उसके ऊपर चढ़ गए॥ फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके,बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥ हनुमानजी, श्रीराम के बाण जैसे तेज़ गति से, लंका की ओर जाते है- जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥ जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥4॥ जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखे थे,वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया और जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है,ऐसे हनुमानजी वहा से लंका की ओर चले॥ मैनाक पर्वत का प्रसंग: समुद्र ने मैनाक पर्वत को हनुमानजी की सेवा के लिए भेजा- जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥ समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की –हे मैनाक, तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो,इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो,॥ मैनाक पर्वत हनुमानजी से विश्राम करने के लिए कहता है- सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब। कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥ समुद्रके वचन कानो में पड़ते ही मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत ऊपर को उठ गया,जिससे हनुमानजी उसपर बैठकर थोड़ी देर आराम कर सके और हनुमान जी के पास आकर,वारंवार हाथ जोड़कर, उसने हनुमानजीको प्रणाम किया॥ 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट: ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता ह
ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट: ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता ह #समाज
read moreVikas Sharma Shivaaya'
शनि गायत्री मंत्र: .-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् || -ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रचोदयात || -ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात || सुंदरकांड: दोहा – 1 प्रभु राम का कार्य पूरा किये बिना विश्राम नही हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥1॥ हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छुआ, फिर उसको प्रणाम किया, और कहा की – रामचन्द्रजीका का कार्य किये बिना मुझको विश्राम कहाँ? ॥1॥ श्री राम का कार्य जब तक पूरा न कर लूँ, तब तक मुझे आराम कहाँ? श्री राम, जय राम, जय जय राम सुरसा का प्रसंग देवताओं ने नागमाता सुरसा को भेजा जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥ सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥1॥ देवताओ ने पवनपुत्र हनुमान् जी को जाते हुए देखा और उनके बल और बुद्धि के वैभव को जानने के लिए॥ देवताओं ने नाग माता सुरसा को भेजा। उस नागमाताने आकर हनुमानजी से यह बात कही॥ सुरसा ने हनुमानजी का रास्ता रोका आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा॥ राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥2॥ आज तो मुझको देवताओं ने यह अच्छा आहार दिया। यह बात सुन, हँस कर हनुमानजी बोले॥ मैं रामचन्द्रजी का काम करके लौट आऊँ और सीताजी की खबर रामचन्द्रजी को सुना दूं॥ हनुमानजी ने सुरसा को समझाया कि वह उनको नहीं खा सकती तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥ कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥3॥ फिर हे माता! मै आकर आपके मुँह में प्रवेश करूंगा। अभी तू मुझे जाने दे। इसमें कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा। मै तुझे सत्य कहता हूँ॥ जब सुरसा ने किसी उपायसे उनको जाने नहीं दिया, तब हनुमानजी ने कहा कि, तू क्यों देरी करती है? तू मुझको नही खा सकती॥ सुरसा ने कई योजन मुंह फैलाया, तो हनुमानजी ने भी शरीर फैलाया जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥ सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥4॥ सुरसाने अपना मुंह, एक योजनभरमें (चार कोस मे) फैलाया। हनुमानजी ने अपना शरीर, उससे दूना यानी दो योजन विस्तारवाला किया॥ सुरसा ने अपना मुँह सोलह (16) योजनमें फैलाया। हनुमानजीने अपना शरीर तुरंत बत्तीस (32) योजन बड़ा किया॥ सुरसा ने मुंह सौ योजन फैलाया, तो हनुमानजी ने छोटा सा रूप धारण किया जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥ सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥5॥ सुरसा ने जैसे-जैसे मुख का विस्तार बढ़ाया, जैसा जैसा मुंह फैलाया, हनुमानजी ने वैसे ही अपना स्वरुप उससे दुगना दिखाया॥ जब सुरसा ने अपना मुंह सौ योजन (चार सौ कोस का) में फैलाया, तब हनुमानजी तुरंत बहुत छोटा स्वरुप धारण कर लिया॥ सुरसा को हनुमानजी की शक्ति का पता चला बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥ मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥6॥ छोटा स्वरुप धारण कर हनुमानजी, सुरसाके मुंहमें घुसकर तुरन्त बाहर निकल आए। फिर सुरसा से विदा मांग कर हनुमानजी ने प्रणाम किया॥ उस वक़्त सुरसा ने हनुमानजी से कहा की – हे हनुमान! देवताओंने मुझको जिसके लिए भेजा था, वह तुम्हारे बल और बुद्धि का भेद, मैंने अच्छी तरह पा लिया है॥ 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' शनि गायत्री मंत्र: .-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् || -ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रच
शनि गायत्री मंत्र: .-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् || -ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रच #समाज
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