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Lokendra Thakur

संवेदना के आंगन में जब क्रूरता घर कर जाती हैं 
मर जाती हैं शुचिता और  कर्मण्यता मर जाती हैं करूणा,वेदना, हो गये मनुज स्वभाव के विलोम
   मनुष्य के इन कृत्यो से तो पशुता भी ड़र जाती हैं।। 
लोकेंद्र की कलम से ✍️😔 #RIPHUMANITY#लोकेंद्र

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से

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इंसा हैं तू दरिंदा न बन 
जमीं पर रख पैर अपने 
तू परिंदा न बन ।

यह दुनिया बनीं हैं तुझसे 
पर अपनी दुनिया अलग चाहता है 
कम पड़ रही हैं जमीं 
जो अब तू फलक चाहता है,

शहर है पत्थरों का अब
जस्बात कहां मिलते हैं 
मिलते हैं दो शख्स पर
ख्यालात कहाँ मिलते हैं ,

छुपाकर हवाओ में क्यों
कितने शोले रखे हैं तूने
कौन सी तस्वीर मुकम्मल होगी
रंग स्याह घोले रखे हैं तूने,

मर चुकी हैं रूह तेरी 
जिस्म की लाश ढोह कर 
तू जिंदा न बन
इंसा हैं तू दरिंदा न बन 
जमीं पर रख पैर अपने 
तू परिंदा न बन ।।

लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से #कविता

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शीश पर विराजित चंद्र 
और कंठ में भुजंग 
अद्भुत रूप भूत भावन महाकाल के ।
त्रिनेत्र त्रिशूल धारी,
भस्म जिनको हैं प्यारी
स्वामी हैं जो तीनों लोक और काल के।।
नंदी की सवारी लिये, 
देव दानव सबके प्रिय 
शिवजी चले ब्याह रचाने को ।
ढोल नगाड़ो के संग,
भूत पिशाच देव और गण
बाराती बन चले नाचने गाने को ।।

मंगल गीत गाकर झूम रही हैं दिशाये
वेद मंत्र उच्चारित हुये,जीवंत हुई ऋचायें ।।

एक  हुई दो शक्तियां 
सृष्टि का पालन करने को
भाव विभोर हैं सृष्टि पूरी ,
आतुर हैं उज्जैनी उत्सव मनाने को।
नंदी की सवारी लिये, देव दानव सबके प्रिय 
शिवजी चले ब्याह रचाने को।।
लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से

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पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते
रतजगो में  ही कटती हैं रतियां ।

दिन में रहती हैं ऐसी खुमारी
पल पल बीते, तो लगे हैं सदियां ।

लब की सब कहन ,तो जग जाने है
समझ न सके कोई,मन की बतियां ।

सांझ को राह तके ऐसे मुझको
और घड़ी तके रहती हैं अखियां ।

पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते
रतजगो में  ही कटती हैं रतियां ।

लोकेंद्र की कलम से✍️ #लोकेंद्र की कलम से

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से

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खुद से रूठे हैं यूं,कि आइने में अक्स नजर नहीं आता, 
दुआ देता हैं गर कोई, तो क्यों उसका असर नहीं आता

कम हकीकत थोड़ा फ़साना है इस मोबाइल के दौर में 
अब चिठ्ठी नहीं आती डाकिया अच्छी खबर नहीं लाता  

जुबां ने रख लिये अल्फाजो के साथ कितने ही सामान
बिकने को बाजार में अब जहर और खंजर नहीं आता 

कांटो की है साजिश की चमन के फूल में जंग जारी रहे 
गुलशन को लूटने को अब बाहर से सिकंदर नहीं आता

इतना बे-हिस होकर मिलता है जैसे रस्मदायगी हो बस 
आंखों से दिखता तो है वो पर दिल के अंदर नहीं आता 

लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से #शायरी

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इश्क़ की गजल आसमां पर लिख दूं ,

ताकी हर बादल पढ़ता हुआ गुजरे

बरसे जमीं पर जब वो बारिश बनकर

तो साथ बरसे मेरे शेऱ के मिसरे ।

           (लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से #कविता

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🖋""कुछ लिख सकूं""🖋 (लोकेंद्र की कलम से) 
शीर्षक की अभिव्यक्ति में 
शब्द चयन, अर्थ तर्क की शक्ति में 
असमंजस के युद्ध में घिरा 
यही प्रयत्न हैं, विजय की हठ रखूं
हृदय प्रिय लगे,ऐसा कुछ लिख सकूं

काव्य,रस, से परिचित नही
भाषा का कण मात्र हूं
मैं कोई क्षितिज नही
भावना के ताल को प्रवाहमान कर
यही प्रयत्न हैं विशाल समुद्र रख सकूं ।
हृदय प्रिय लगे,ऐसा कुछ लिख सकूं ।

तम रूपी अज्ञान को कब
भेदेगी रश्मियां ज्ञान की
इसी तपस्या में लीन हूं
नया इतिहास रच सकूं
हृदय प्रिय लगे, ऐसा कुछ लिख सकूं। #लोकेंद्र की कलम से

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से #कविता

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रूकना नहीं, बहुत वक्त हैं शाम आने के लिए 
मैं दिन हूं तेरा, पर हूं बस  गुजर जाने के लिए।

पत्थर की ठोकर से संभले हो, तो शुक्रिया कहो
चंद मिलती हैं मोहलत,यहां संभल जाने के लिए ।

जिंदादिल पर तुम्हारी आसमां भी रक्स़ करे
वरना आये तो सब हैं,जमीं पर मर जाने के लिए ।

मन्नत के धागे बांध कर, इत्मीनान तो कर लेना
पर सब करना तुम्हें ही, कुछ कर जाने के लिए ।

अब के दुआये उनकी काम कर जाये तो अच्छा है 
कितना डूबेगें हम, दरिया पार कर जाने के लिए ।

इश्क़ लिखे बिना, दिल को तसल्ली नहीं है लोकेंद्र
ये शे़र जरूरी हैं उनका दर्द कम कर जाने के लिए ।
            लोकेंद्र की कलम से #लोकेंद्र की कलम से

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से #कविता

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मैं उम्मीद से उम्मीद जोड़ता हूँ 
ख्वाबो का थोड़ा कद बढ़ता हूँ
वैसे ही जैसे ताश के पत्तो का
एतिहात के साथ महल बनाना
पर आखरी छोर आते ही कौन
कर देता हैं हवा से चुगली
 वो आती हैं बस टूट जाती हैं 
उम्मीदे, बिखर जाते हैं वो ख्वाब 
ताश के पत्तो की तरह
पर 
हवा से कह देना रूका नहीं हूं मैं ।।
 
(लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से

Lokendra Thakur

#लोकेंद्र की कलम से #कविता

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""खामोशी""
कोरा कागज, महज कोरा नहीं है 
उस पर मेरी खामोशी लिखी हैं 
तुम चुपके पढ़ लेना सब कुछ
और लिख देना कुछ अल्फाज
ताकि और कोई पढ़ न सके 
मेरी खामोशी को। 
(लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से
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