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kavianilthakre

#सोचता हूं

जब प्रकृति ने खींच दी लक्ष्मण रेखा
 तब घर की छतों पर लोगों को निकलते देखा 

अपनत्व भाव से दशकों बाद मिलते देखा 
नीरस पड़े पुष्प रूपी सबंधों को पुनः खिलते देखा

फ़ुरसत से बातें हुई तो जाने लगे 
 परत दर परत नए किस्से याद आने लगे 

व्यवहार में उनके नितांत अपनापन दिखा
खो चुके एहसासों से कितना कुछ सीखा

बचे वक्त में एकान्त भी चुना 
चहचाते खगों को मन लगाए सुना 

वक्त काटने का ये नायाब तरीका है 
मूक प्राणियों से प्रेम का यही सलीका है

- कवि अनिल #KaviAnilKumar

kavianilthakre

अकेला सा हो गया हूं अब 
मन करता है किसी के बाल संवारूं 
सोए कोई मेरी भी गोद में इत्मीनान से
ताउम्र बस ऐसे ही जिंदगी गुजारूं

                - @ni! #kavianilkumar

kavianilthakre

#सोचता हूं

धीमे धीमे जो ताल सूर में 
आए
दबे पांव जब मौत तुमसे लिपट 
जाए

गली कूचे सड़कें नितांत वीरान हो 
जाएं

ये खौफ ये मंज़र देखकर लगने 
लगा है 
क्या पता ये बसन्त भी शायद ही 
देख पाएं 

- कवि अनिल #KaviAnilKumar

kavianilthakre

#सोचता हूं

भरी जवानी में बेवक्त आंसुओं का बहना 
कितनी तकलीफ देता है मरे हुए इश्क़ का जिन्दा रहना ।

- कवि अनिल #kavianilkumar

kavianilthakre

इस बात का किसको एहसास है 
जो भी आ रहा है बहुत ख़ास है

❤️.... #Kavianilkumar

kavianilthakre

#सोचता हूं

भरी जवानी में बेवक्त आंसुओं का बहना 
कितनी तकलीफ देता है मरे हुए इश्क़ का जिन्दा रहना ।

- कवि अनिल #kavianilkumar

kavianilthakre

#सोचता हूं

शब्दों से ना सही एहसासों से जज़्बात बहने दो 
रहो बेशक करीब पर आबाद रहने दो, 
रिश्तों की आजमाइश ना करो जानिब से
 गर चलना है दूर तक तो आजाद रहने दो

       - कवि अनिल #kavianilkumar

kavianilthakre

#सोचता हूं

टकराते रहे किनारे  रात भर जगाने को 
भूजती शमा तले एक उम्मीद दिखाने को
एक घरौंदा उजड़ा तो दबी सिसकियां
ख्वाहिशों की शक्ल में बही कश्तियां

अर्श पर काबिज़ सपनों ने खुदकुशी की
मुलायम कंधे ने अनजाने ही पनाह दी

ऐस में लगोगी गले ये बेशक उम्मीद थी
आंखें खुली टूटा तिलिस्म और दिल्लगी छीन ली
 अपनापन न दिखा उनके आख़िरी सन्देश में 
 भटकते रहे तमाम उम्र हम बेगानो के भेष में

- कवि अनिल #kavianilkumar

kavianilthakre

#सोचता हूं

जुबानी जंग और तकरार रहने दो 
बोलती आखों तले खुमार रहने दो

आज काम न आए ना ही सही 
उसके करीब चलो, इजहार रहने दो

यकीं है मेरा जज़्बात डोलेंगे
हाथ फ़िर मन की बात बोलेंगे

तजुर्बा कर सही सुकुं लाएगा
गर हो अपना तो करीब आएगा

- कवि अनिल #kavianilkumar

kavianilthakre

#सोचता हूं

कैद सा हूं मौत की अदालत में 
चुभती है ये ख़ामोश बेपरवाही तेरी  
इस जुर्म में तेरे अपने भी साथ हैं
 कैसे साबित करता मैं बेगुनाही मेरी

- कवि अनिल #KaviAnilkumar
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