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Rakesh frnds4ever
धुंधली शाम के मानिंद आंखें भी धुंधला चुकी हैं ओर इस धुंधलेपन में मंजिल भी शायद धूमिल हो चुकी है संध्या का सूरज जिस तरह डूब रहा है,, जैसे जैसे श्यामलता घटती जा रही है, वैसे वैसे ही जिंदगी में शामिल ये तिमिर ये अंधकार भी मुझमें और मैं इसमें डूबता जा रहा हूं,, क्या पता किसी रोज इस संध्या की अंधेरी रात के पश्चात का भोर रूपी सवेरा होने ही ना पाए,, क्या पता कब वो क्षण आए जब ये सांझ ढलते ढलते जीवन की भी संध्या बेला को भी साथ में ढाल ले जाए,,,... ©Rakesh frnds4ever #Shajar #धुंधली #शाम के मानिंद आंखें भी धुंधला चुकी हैं ओर इस धुंधलेपन में मंजिल भी शायद #धूमिल हो चुकी है #संध्या का सूरज जिस तरह डूब रहा है,, जैसे जैसे श्यामलता घटती जा रही है, वैसे वैसे ही जिंदगी में शामिल ये तिमिर ये #अंधकार भी मुझमें और मैं इसमें डूबता जा रहा हूं,,
Rakesh frnds4ever
जब जिंदगी के थपेड़े लगते हैं तो ना बलशाली, मजबूत शरीर काम आता है ना अच्छा स्वास्थ्य यहां तक कि आपकी ईमानदारी ,अच्छाइयां, भी बेईमानी हो जाती हैं आपको भोलापन लोगों को बुरा लगने लगता है और खुद के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला काम करने लगता है आपका साफ दिल लोगों, अपनों ,दुनिया वालों की गंदगी में धूमिल हो कहीं गुम सा होने लगता है ओर जो कुछ हिस्सा दृश्यगत होता है वो अनायास ही पता नहीं क्यों सबको मलिन व कुटिल लगने लगता है,,... और आप किसी बुत की तरह खामोशी और अंधकार में कहीं छुपते छुपाते ,, बचते बचाते,, अदृश्य जगह में गुम होते चले जाते हैं,,,.... ©Rakesh frnds4ever #berang जब #जिंदगी के #थपेड़े लगते हैं तो ना बलशाली, मजबूत शरीर काम आता है ना अच्छा स्वास्थ्य यहां तक कि आपकी #ईमानदारी ,अच्छाइयां, भी #बेईमानी हो जाती हैं आपका #भोलापन लोगों को बुरा लगने लगता है और खुद के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला काम करने लगता है
Shubham Bhardwaj
टूटा तारा आज गगन से,धूमिल होता जाता है। जीवन इसका नाम नही है,जो पीछे पछताता है।। जीवन की इस पगडंडी पर,धूमकेतु कई आते हैं। सच्चा जीवन और सजीला, ध्रुव नाम कहलाता है।। प्रभु की महिमा का कर ध्यान, जीवन का कर कल्याण। क्षणभंगुर जीवन में तो बस यही सुहाता है ।। तू भी मेरा, वह भी मेरा, दो दिन का है रैनबसेरा। क्यों व्यर्थ कहावत गढ़ते हो,जब कुछ साथ नही जाना है।। ©Shubham Bhardwaj #chaand #टूटा #तारा #आज #गगन #से #धूमिल #होता #जाता #है
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