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Parul (kiran)Yadav
"ये सड़के मुझे रास्ता बताती है तेरे घर तक जाने का ...❤️ ©Parul Yadav #sadak #सड़कें #रास्ता #दिल #प्यार #घर🏡 #नोजोतोहिन्दी Ashutosh Mishra SIDDHARTH.SHENDE.sid Sethi Ji rasmi Noor Hindustanai Ramkaran Siddique Vkvkvk
पूर्वार्थ
ये बेरूह सड़कें, मुझे मेरी ही जैसे लगती हैं, है कितना कुछ इनमें, दुनिया के लिए, बस, खुद को भरने के लिए तरसती हैं | ©purvarth #सड़कें
Pushpinder Singh
फिर वही बरसात का मौसम फिर वही सड़कों का कीचड़ मुहँ फाड़े गहरे गडढे, गटर और उन गड्ढ़ों पर रगड़ते जीवन नालियों से निकलता गन्दा पानी मन्दिर घरों तक गटर का पानी कहीं गिरते लोग इन गड्ढ़ों में कई होते ज़ख़्मी इन गड्ढ़ों में सोता नगर निगम इन गटर में सोता सारा प्रशासन इन गड्ढ़ों में पर नेताओं की सड़क है चकाचक उड़ते आते आसमान से खटाखट हैरानी है कहाँ जा रहा है देश अन्धे बहरों का है क्या ये देश बनी नहीं सड़कें सत्तर सालों में बदल जाती हैं सड़कें गन्दे नालों में हर साल का यही है रोना रोता सड़कों का हर कोना पर शायद अब ये आदत हो गयी है इस हाल से गुजरने की रिवायत हो गयी है फिर भी हम आगे बढ़ रहे हैं दुनिया को चुनौती दे रहे हैं यही है शायद हाल हमारा ऐसे ही चलेगा क्या देश हमारा..... ©pushpinder_1 रोती सड़कें
रोती सड़कें #कविता
read moreअरफ़ान भोपाली
वाह क्या रोशन हुई है , मेरे गांव शहर की सड़कें पेड़ो को काटकर चौड़ी हुई है गांव शहर की सड़कें #गांव #शहर #सड़क #मुहब्बत #इश्क़ #देश #वतन #पेड़लगाओ #savetree #nojoto #nojotohindi #hindiwriters #nojotoworld #feelings #feel
#गांव #शहर #सड़क #मुहब्बत #इश्क़ #देश #वतन #पेड़लगाओ #savetree nojoto #nojotohindi #hindiwriters #nojotoworld #feelings #Feel
read moreVikram Agastya
सर्दियों की रात # "सर्दियों के रात" सड़क से प्रेम और वादा/विक्रम अगस्त्य /_ सर्दियों के रात, विरान पड़ी सड़कें.. दोस्तों के चल रहे थे, कंधे पे हाथ रख हमसभी कुछ गुनगुना रहे थे। सर्द हवाएं साथ निभा रही थी, शायद हम लड़कों की अल्हड़पन को देख,
read moreVikram Agastya
"सर्दियों के रात" सड़क से प्रेम और वादा/विक्रम अगस्त्य #नवयुवकों का प्रकृतिक प्रेम "सर्दियों के रात" सड़क से प्रेम और वादा/विक्रम अगस्त्य_ /_ सर्दियों के रात, विरान पड़ी सड़कें.. दोस्तों के चल रहे थे, कंधे पे हाथ रख हमसभी कुछ गुनगुना रहे थे। सर्द हवाएं साथ निभा रही थी,
read moreVikram Agastya
"सर्दियों के रात" सड़क से प्रेम और वादा/विक्रम अगस्त्य /_ सर्दियों के रात, विरान पड़ी सड़कें.. दोस्तों के चल रहे थे, कंधे पे हाथ रख हमसभी कुछ गुनगुना रहे थे। सर्द हवाएं साथ निभा रही थी, चाँद बादलों के पीछे शरमा रही थीं। विक्रम अगस्त्य झूम उठा , दोस्तों ने संगीत की रंज भरा, मौसम भी महक उठा , चाँद भी संमा देख खूबसूरत रौशनी से दहक उठा, मनोरंजन का पल था, विरान सड़कें भी जग रहा था। "कुछ दूर चलते ही सड़क की आखिरी छोर तक पहुंचा। ना जानें वो सड़कें मुझे से कुछ कह रही थी। राही तो चलते हैं, मुझपे अनेक... इतना जख्म मिला, इतना दरारें मिले, ना जाने तुम कहाँ से आऐं हो, ऐ राही आज मुझे तुमसे सच्चा प्यार मिला। विक्रम अगस्त्य_ मेरे चहेरे पे ठंडी मुस्कान दिखा, मैं उस सड़क को पीछे मुड़ -मुड़कर देख... उससे वादा कर बैठा...ये संमा वापस आऐगी, ये सर्द रात भी होगीं, चाँद की खूबसूरती भी होगीं, ये दोस्त भी साथ होगें, और विक्रम अगस्त्य का आशिकाना अंदाज़ भी होगा। "मन' इतना कह निकल पड़ा आगे.....। _-Vikram Agastya #NojotoQuote विक्रम अगस्त्य और सर्दियों में सड़कों से प्रेम "सर्दियों के रात" सड़क से प्रेम और वादा/विक्रम अगस्त्य /_ सर्दियों के रात, विरान पड़ी सड़कें.. दोस्तों के चल रहे थे, कंधे पे हाथ रख हमसभी कुछ गुनगुना रहे थे। सर्द हवाएं साथ निभा रही थी, चाँद बादलों के पीछे शरमा रही थीं।
विक्रम अगस्त्य और सर्दियों में सड़कों से प्रेम "सर्दियों के रात" सड़क से प्रेम और वादा/विक्रम अगस्त्य /_ सर्दियों के रात, विरान पड़ी सड़कें.. दोस्तों के चल रहे थे, कंधे पे हाथ रख हमसभी कुछ गुनगुना रहे थे। सर्द हवाएं साथ निभा रही थी, चाँद बादलों के पीछे शरमा रही थीं।
read moreअमित
ये बेआबरू सड़कें, लंबी चौड़ी सी, धरती के सीने पर बेबाक दौड़ती! नदियों और पहाड़ों से अठखेलियाँ करतीं! बीहड़ों और मरुस्थलों से सरपट गुजरतीं! बरसात में मुंह खोले इन्तजार करती हैं! अपने बड़े-बड़े गड्ढों के साथ, इनपर गुजरने वालों का रिश्ता, मौत से तय करने के लिए! ये बेआबरू सड़कें, जिनकी अस्मत लूट कर, इंजीनियर और कांट्रेक्टर, अपने बीवी बच्चों के तन ढकते हैं, निगल जाती हैं कितनी ही जिंदगियाँ, ये बेआबरू सड़कें। #kushal
कृष्ण की कलम से
-----राही----- चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। चलता है थकता है, रूकता है फिर चलता है, कर लेता आराम दो पल का, मिल जाती जहाँ छाव, चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। कभी कच्ची सड़कें चलता है, कभी पक्की सड़कें चलता है, गिरता है उठता है, लड़खड़ता है संभलता है, हो चाहे जैसे हालात, साथ न छोड़े पाँव, चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। कभी नदियाँ मिलती कभी सागर मिलते, झील ताल महासागर मिलते, कभी तैर कर करते पार, कभी मिल जाती नाँव, चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। @कृष्ण
कृष्ण की कलम से
-----राही----- चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। चलता है थकता है, रूकता है फिर चलता है, कर लेता आराम दो पल का, मिल जाती जहाँ छाव, चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। #Poetry
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