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Aditya Kumar Bharti
तुम मुझे भूल जाओ ये मुमकिन है पर मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा मुझे ये यकीन है आदित्य कुमार भारती #खण्डित हृदय
#खण्डित हृदय
read moreशुभ'म
अभी भी वीर ने हार न मानी है, करते रहे प्रहार दुराचारी मिलकर उस बालक पर, फिर भी उसने चक्रव्यूह तोड़ने को ही ठानी है, उन निर्दयीयों को दया न उस पर आ रही थी, युद्धभूमि अब चन्द्रपुत्र के रक्त से, लाल रक्त भूमि हो जा रही थी, वह उठा फिर भी ललकार के, रथ का पहिया फेका है कौरव सेना पर, फिर भगदड़ मच चुकी थी दुष्टों के सेना पर, तभी चालाकी मे एक साथ, वह सभी अभिमन्यु पर तुट पड़ें हैं, अब अभिमन्यु अपनों से दूर हो चलें हैं, युद्धिष्ठिर खुद को कोसते और, अर्जुन से खुद का वध करने को कह रहें हैं, तभी बोले हैं मोहन, मत पश्चताएँ बड़े भैया, वीरता का उदाहरण होगा अभिमन्यु, युगो-युगो तक उसका नाम रहेगा, हर पिता के लिए एक ऐसा ही आस रहेगा, हर माँ के गर्भ में अभिमन्यु का ही वास रहेगा, बलिदान दिया है उसने जो मात के लिए, वह हर आने वाले पीढ़ी में एक उत्तमाश रहेगा....!! -Sp"रूपचन्द्र" खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र की तेजशीलता Part-4
खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र की तेजशीलता Part-4
read moreRohit Khandelwal
पेड़ की जड़े होने लगी कमजोर हर पत्ता बिखरने लगा है कभी खिलते हुए नज़र आते थे हँसी के चेहरे पर उसी से अब आंसू आने लगे है मेरी कलम रोहित खण्डेलवाल
मेरी कलम रोहित खण्डेलवाल
read moreशुभ'म
युवराज के गरज को सुन कौरव हुए व्याकुल, मन में तीव्र शंका उठ रही उनके कि, कहां से आ गया पांडव कूल में ऐसा प्रतिभा कुल, कृष्ण भगिना के ललकार से, कौरव सेना पीछे जा रही थी, अब सेनापति द्रोर्ण और मामा, शकुनि की भी बुद्धि चकरा रही थी, कर्ण दुर्योधन-दुशासन तो दूर हो रहे थे हठी बालक के आगे उनके वीरता भी शुन्य हो रहे थे, तोड़ रहा इस भांति अभिमन्यु चक्रव्यूह के दरवाजे को, मानो कोई जैसे आग का गोला जा रहा है, कौरव सेना को काटते-काटते भष्म किया जा रहा है, अब मच चुका था कौरव सेना में हाहाकार, त्राहि माम,त्राहि माम की गूंज रही थी, बस हर तरफ यही एक पुकार, एक-एक करके अभिमन्यु ने, छह दरवाजे को तोड़ लिया, सातवें दरवाजे को तोडने वाला था कि, रथ के पहिए को युद्धभूमि ने अपने में फेर लिया, उसने सोचा कि रथ को उबार लूं, मगर जयद्रथ ने चलाया है धोखे में बाण, जिसे ना समझ सका है युवराज, घायल हो गिरा युद्धभूमि, जिसे पापियों ने है चारो तरफ से घेर लिया....!! -Sp"रूपचन्द्र" खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र के तेजशीलता Part-3
खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र के तेजशीलता Part-3
read moreशुभ'म
संशयग्रस्त युधिष्ठिर हुए अब और बेहाल, पुछे इसे कैसे तोड़ना जानते हो तुम, कैसे जानते हो इसका हाल, तभी अभिमन्यु बोला, मैं मां के गर्भ में था आंखों को खोला, पिताजी मां को चक्रव्यूह भेदन बता रहे थे, एक-एक दरवाजे तोड़ते और पार होते जा रहे थे, पिताजी ने छह दरवाजे तोड़ लिया, और सातवें में मां को आंख लग गई, जिससे मैं भी सो गया, और सातवें दरवाजे को, तोड़ने की कथा सुन रह गई, युधिष्ठिर बोले हे पुत्र, मैं तुम्हें युद्ध भूमि में नहीं भेज सकता, आखरी संतान हो तुम हम पांडव की, तुम्हारे बिन कोई पांडव वंश नहीं रह सकता, गरजे चंद्र पुत्र अभिमन्यु तेज प्रताप के साथ, हे काका श्री मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, चक्रव्यूह के छ: दरवाजे सब कुशल तोड़ जाऊंगा, जिससे कौरव होंगे भयभीत, और मैं इससे सातवां दरवाजा भी तोड़ कर आऊंगा, दिया युधिष्ठिर ने अब आयुष्मान भव: का आशीर्वाद, चल पड़े हैं गरज कर युवराज, अभिमन्युअब चक्रव्यूह के पास....!! -Sp"रूपचन्द्र" खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र की तेजशीलता Part-2
खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र की तेजशीलता Part-2
read moreशुभ'म
द्रोर्ण ने चली थी चाल अब फूटनीति की, पांडव से अर्जुन अलग करने की कूटनीति थी, धर्म के रक्षा-रथ पर सवार अर्जुन, युद्ध भूमि में अब अपनों से दूर हो चला था, कौरव के इस चाल को न समझ सके धर्मराज, जो उनके समक्ष "चक्रव्यूह" खड़ा था, अब युधिष्ठिर के चेहरे पर, संशय की मां आंख खड़ी थी, बार-बार दुर्योधन की ललकार, उन्हें परास्त के दरवाजे पर, ले जाने को अड़ी थी, तभी एकाएक बोला, सोलह बरस का सुकुमार सुभद्रा नंदन, हे काका श्री कुछ मेरा भी स्वीकार कर लो अभि "वंदन", गर्व से कहता हूं, हूं मैं अर्जुन पुत्र अभिमन्यु, इस युद्ध भीड़ क्षेत्र में, अर्जुन की कमी नहीं खलने दूंगा, सौगंध है मुझे पिताश्री की, अब अपने मस्तक में मां द्रोपदी पर हुए, अत्याचारों को नहीं पलने दूंगा, अब बहुत हो चुका, आज्ञा दो हे काका श्री, चक्रव्यूह को तोड़ कर जाऊं, बढ़ जाऊं विजय पथ पर, और दुशासन का मस्तक फोड़ के आऊं, -Sp"रूपचन्द्र" खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र की तेजशीलता Part-1
खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र की तेजशीलता Part-1
read moreSumit Chourey
जय श्री दादा जी धूनीवाले गुरूपूर्णिमा की शुभकामनाए खण्डवा नगरी जय श्री दादा जी धाम
खण्डवा नगरी जय श्री दादा जी धाम
read moreAnjali Raj
जज़्बात की ज़मीं पर हैं खण्डहरात फैले आते हैं अब यहां पर इतिहास लिखने वाले हैं रेत के कंटीले बंजर से थोड़े टुकड़े सूखा सा एक दरिया झुलसे हुए उजाले लिख लो ऐ लिखने वालो, तारीख़ उन दिनों की बनते थे रोज़ ही जब देश और धरम निवाले नामों निशां मिटा कर दम लेंगे कहते थे जो खोजे से भी न मिलते नाम उनका लेने वाले हद से गुज़र गए जो हद को बढ़ाने ख़ातिर सन्नाटों पे हैं नाचें अब वो नचाने वाले किसका था ख़्वाब ऐसा पूरा जो हो रहा है रुक जा अभी भी ऐसे सपने सजाने वाले #अंजलिउवाच #YQdidi #खण्डहरात #देश #धर्म #हद #ख़्वाब
Vivek Singh rajawat
अगर खण्डहर बोलते, तो क्या बोलते? अगर खण्डहर बोलते तो क्या बोलते? काल के साथ ख़त्म राज खोलते किसी की जवानी या फिर, कोई अनोखी प्रेम कहानी बोलते अगर खण्डहर बोलते तो क्या बोलते? वीर के बारे में बोलते कायर की कायरता खोलते षड्यंत्रो को आज के पैमाने में तोलते अगर खण्डहर बोलते तो क्या बोलते? किसी रूमानी अफवा को फैलाते ख़ुद में चमगादड़ो औऱ साँपो को छिपाते औऱ कुछ बेलों से ख़ुद को सजाते अगर खण्डहर बोलते तो क्या बोलते? पुराने वट वृक्ष से दोस्ती करतें उसको अपना हम राज कहते औऱ रात्रि के तीसरे पहर में भय बढ़ाते अगर खण्डहर बोलते तो क्या बोलते? वट वृक्ष की शोभा घुघ्घू बढ़ाते एक डाल बैठे चित भय बढ़ाते पास गुज़रने पर आवाज़ लगा रोकते अगर खण्डहर बोलते तो क्या बोलते? पूछने पर सच ही बताते इतिहासकारो की सारी जिज्ञासा सुलझाते सच्चाई बताते भूतकाल दिखाते अगर खण्डहर बोलते तो क्या बोलते? विवेक सिंह राजावत। खण्डहर बोलते तो क्या बोलते?
खण्डहर बोलते तो क्या बोलते?
read moreKh_Nazim
"ऐसा नहीं है कि बुरा नही लगता , टुटा सा अंग भी कतई अच्छा नही लगता" यह तो फिर आस्था की बात है प्यारे, हम किसी को भी हमारा आराध्य. खण्डित अच्छा नही लगता। "जिस की पूजा तुम या मैं करता हु रहता वो हमेशा से मेरे दिल मे है बस यह भावनाये है जो उसको अपना भगवान अधूरा अच्छा नही लगता।" खण्डित कविता से .....! #खंडित #khnazim