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Best क़लम_ए_ख़ास Shayari, Status, Quotes, Stories

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राजेन्द्र प्र०पासवान

रज़ा #क़लम_ए_ख़ास

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तेरी तस्वीर को उस निग़ाहों से देखना मेरी ख़ता है 
अब तू डँस ले या बदन से लिपट जा तेरी रज़ा है ।
(ख़ता =भूल, रजा=इच्छा ) रज़ा 
#क़लम_ए_ख़ास

राजेन्द्र प्र०पासवान

तीरगी #क़लम_ए_ख़ास

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आखरी लौ कुछ ज्यादा तेज जलता है तब कोई चराग़ बुझता है 
अन्धेरों से क्या मुक़ाबला ग़र चराग़ो के जलने से ही वो डरता है । #gif तीरगी 
#क़लम_ए_ख़ास

राजेन्द्र प्र०पासवान

खुमार #क़लम_ए_ख़ास

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तेरे प्यार में  किसी को सियासत की सर्दी 
किसी को गर्लफ्रेंड की खाँसी 
किसी को उसी को देखते रहने का
बुख़ार लगता है ।
इश्क़ में क्या कहे "पासवान"
रोज-रोज पीते रहने से 
किसी दिन ग़र ना मिले 
बिन पीये भी खुमार लगता है । खुमार 
#क़लम_ए_ख़ास

राजेन्द्र प्र०पासवान

फ़र्क़ #क़लम_ए_ख़ास

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किसी के फिराक में नेटवर्क जिम्मेदार नहीं होता है 
एकतरफ़ा इश्क़ हमेशा इन्तिज़ार में रहता है ।
जरा भी फ़र्क़ नहीं पड़ता है शर्मो हया में "पासवान"
अज़्म लेते हैं हम जब किसी से प्यार होता है । #gif फ़र्क़ 
#क़लम_ए_ख़ास

राजेन्द्र प्र०पासवान

ख़ास #क़लम_ए_ख़ास

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यूँ ही तकल्लुफ़ में आई दावत हमारी 
 दिल से ना मुझको वो ख़ास बुलायी ।
दो टुकड़े में बँटी हुई है तस्वीर हमारी 
जुड़े से भी ना बदलेगी तकदीर हमारी । ख़ास
#क़लम_ए_ख़ास

राजेन्द्र प्र०पासवान

बड़ी ख़ामोशी से
 सय्याद अपना
 शिकार करता है ।
 इन्सान को
 अबद की बातों से 
 उल्लू बनाता है ।
फिर मीठी ज़ुबाँ से
 उसका दिल जीत कर
  छप्पन छुरी से 
वार करता है । #सय्याद 
#क़लम_ए_ख़ास

राजेन्द्र प्र०पासवान

भला हमें क्या मिलेगी मंज़िल जब हुस्न मेरा कुसूर देखता है 
आशिक़ कब बंदिशें और दुनिया का दस्तूर देखता है 
इन्सान सब है मग़र नजरिये का फ़र्क है कबीलों में 
ख़ुद को ताक़तवर और हमको मज़बूर देखता है । #gif #दस्तूर 
#क़लम_ए_ख़ास

राजेन्द्र प्र०पासवान

है खून में आजादी मिलने का जोश तो जश्न मना लो 
तिरंगे के नीचे वतनपरस्ती का वह जज़्बा दिखा दो 
वतन पर मर-मिटने वाले के नाम एक फूल चढ़ा दो 
मिलेगी खुशियाँ हिन्दोस्ताँ जिन्दाबाद का नारा लगा दो  #gif #बज़्म  #क़लम_ए_ख़ास

राजेन्द्र प्र०पासवान

#क़लम_ए_ख़ास विरह

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अरमानों की चिता में आग लगी है 
धुआँ कहीं और  निकल रहा है ।
मैं आँसूओं में भींगकर जल रहा हूँ 
लोग कहते हैं सावन बरस रहा है । #gif #क़लम_ए_ख़ास  विरह

राजेन्द्र प्र०पासवान

यादों के  शहर से  दोस्त मैं निकल गया 
राह में मिली कश्ती     से दिल डर गया 
गुले-गुलज़ार    होते रहता है "पासवान "
मैं मुहब्बत की कश्मकश से निकल गया 
वो कभी राह में मिली तो नज़र चुरा लेंगे 
सोचूंगा अजनबी मेरे बगल से गुजर गया  #क़लम_ए_ख़ास
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