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Mo k sh K an

पतंग साज ,एक पतंग बना,जो ऊँची उड़े उड़ान 
लिखनी है अब आसमान पर मैंने नई क़ुरान 

फ़िर से जिक्र वली का होगाऔर अली से बातें होंगीं
कान्हा की बंसी सुन सुन कर कीरत जैसी रातें होंगी 
पढ़ कर जिसको पहचाने आदम अपनी पहचान
लिखनी है अब आसमान पर मैंने नई क़ुरान 

पतंग साज ,कन्नी मत कसना आज हवा की चलने दे 
सद्दी के धागों पर उसको आसमान तो मलने दे 
खोद के देखा किसने बादल मिलेगी कोई खान
पतंग साज ,एक पतंग बना जो ऊँची उड़े उड़ान 

कट जाए ,तो कटने दे,डोर के पहरे हटने दे 
जो उड़ जाए बन कर पाखी, उम्मीदों को छटने दे 
लूट लिया तो लूट लिया फिर , है ऎसा इंसान
लिखनी है अब आसमान पर मैंने नई क़ुरान 

कौन फरिश्ता ,पतंग साज अब बात खुदा की बोलेगा 
वक़्त ही ऐसा आया है जब बाँट तराजू तोलेगा
रिश्ते नाते बने तिज़ारत इश्क़ बना एहसान
पतंगसाज, चल लिखते हैं फिर से नई क़ुरान 

उदासियाँ 2 @ पतंगसाज

©Mo k sh K an #उदासियाँ_the_journey 
#mokshkan 
#mikyupikyu 
#ruhina

Mo k sh K an

नई भोर एक बुनते हैं चल नूर पश्म के तारों से
राह चलें चल अब जो हमको क़ामिल करे बहारों से 

रंज रात के रहने दे,जो छूटा वो छूटा 
कब तक जोड़ मिलाएँगे,जो टूटा वो टूटा
और चलें क्यों आगे हम तुम काफ़िर हुए सहारों से
नई भोर एक बुनते हैं चल नूर पश्म के तारों से 

आज हौंसले फिर चखते हैं उम्मीदों को रहने दे 
पैरों को मझधार बना कर उल्टी गंगा बहने दे 
आज डूब के मिलते हैं चल फिर से नए किनारों से 
नई भोर एक बुनते हैं चल नूर पश्म के तारों से 

एक नयी परवाज़ सींच कर आज उफ़क़ को फाँदेंगे
कब तक ऐसे शहतीरों से कल के खुद को बाँधेंगे
आज़ाद करें मन्नत के धागे चल हम सभी मज़ारों से 
नई भोर एक बुनते हैं चल नूर पश्म के तारों से 

एक बसंती बात शुरू हो जो फाल्गुन में ढल जाए 
और रंग मुस्कानों का जो गालों पर भी मल जाए 
नई कोपलें लगी फूटने अब तो सभी चिनारों से 
नई भोर एक बुनते है चल नूर पश्म के तारों से 

नई भोर एक बुनते है चल नूर पश्म के तारों से
राह चलें चल अब जो हमको क़ामिल करे बहारों से 

रुहीना@ नूर पश्म के तारों से

©Mo k sh K an #mokshkan 
#mikyupikyu 
#ruhina 
#noor 
#Hindi

Mo k sh K an

लाज़मी है
कि तल्ख़ कर दिए जाएँ
वो मुग़ालते सारे 
जो मुझे 
तेरे अक़्स से जोड़ते हैं 
फिर 
तोड़ देते हैं
ख़ुद से ही मुझको 
और सवाल बन जाते हैं

©Mo k sh K an #mikyupikyu 
#Zen 
#ruhina 
#Raa 

#smoke

Mo k sh K an

मैं
तुम्हें
लिखना चाहता हूं 
एक नई हदीस की तरह
जिसके हर हर्फ की तर्जुमानी ख़ुदा हो 

मैं 
तुम्हें
सुन्ना चाहता हूँ
शबद की तरह
जो रूह में सुकूँ शाद करे 

मैं
तुम्हें
समझना चाहता हूँ
उस अक़्स की तरह 
जो आईने में उतर कर मैं हो जाए 

मैं
तुम्हें
देखना चाहता हूँ
उस नूर की तरह 
जो दिन में धूप और रात को चाँदनी में मयस्सर हो 

मैं
तुम्हें 
सोचना चाहता हूँ
इस तरह
कि फिर कुछ सोचने को बाँकी ना रहे 

रुहीना @ कुछ शाइस्ता बातें

©Mo k sh K an #mokshkan 
#ruhina 
#Shaishta

Mo k sh K an

चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं 
पलों से वो भारी सुबह संग रात के ले कर छाए हैं 

सूरज भी अलसाया सा देर सहर को चलता है 
और खड़ा आँगन में हो कर अपनी आंखें मलता है
खिले फूल थे जो क्यारी में सर्दी से मुरझाए हैं 
चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं 

घड़ी सुस्त सी चुप्पी है और कांटा भी मौन है 
सुबह जागता था जो मौजीन वो भी जाने कौन है
देर पुजारी ने भी घर से आकर राम जगाए हैं 
चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं 

लगे टीन की छत पर आकर बड़ियों के भी डेरे हैं 
और बंदर भी देर रात तक करते घर के फेरे हैं 
साथ मुहल्ले के कुत्ते सब उन पर ही रिसियाए हैं 
चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं 

गुड़ की पट्टी बाजारों में रोज गज़क से लड़ती है 
गाजर के हलवे की ख़ुश्बू उन से आगे बढ़ती हैं 
और आलू के चिप्स सूखा कर डब्बों में भरवाए हैं
चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं

उल्टे आधे फंदों में उलझी सी देख सलाई है 
और बनाते ऊन के गोले दुखने लगी कलाई है 
और डिज़ाइन वो हो जो कुदरत ने नहीं बनाए हैं 
चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं 

उदासियाँ 2 @ धूप का स्वेटर

©Mo k sh K an #mokshkan 
#mikyupikyu 
#उदासियाँ_the_journey 
#Zen 
#ruhina

Mo k sh K an

सहर जागती है तुझमें और शाम भी तुझमें होती है 
तुझसे रौशन दिन चलता है, रात भी तुझमें सोती है 

है सुकूँ का सिरहाना तू, रहमत से बुनी रज़ाई है 
ओढ़ के तुझको सो जाता हूँ, सर्दी जब भी आई है 
और बता क्या मुर्शिद मेरे, जन्नत कैसी होती है
तुझसे रौशन दिन चलता है, रात भी तुझमें सोती है 

ताबीज़ है तू मैं जिसे बाँध कर अंगारे पी लेता हूँ
साँस रुके या थमें धड़कने मैं फिर भी जी लेता हूँ 
उम्मीदों की पौंध तू मेरी रूह में गहरी बोती है 
तुझसे रौशन दिन चलता है, रात भी तुझमें सोती है 

सुन चारागर तेरे लम्स से दर्द दवा बन जाते हैं
और शफ़ा के त्रसरेणु भी अंदर तक छन जाते हैं 
एक दुआ तू रंग इलाही बेअसर नहीं जो होती है 
तुझसे रौशन दिन चलता है, रात भी तुझमें सोती है 

ऐनक है तू जैसे पहन हर साँस तज़ल्ली होती है 
और बंदगी भी रेशम सी धड़कन के साथ पिरोती है
जले चिरगों के नीचे भी जो नूर बने तू ज्योति है 
तुझसे रौशन दिन चलता है, रात भी तुझमें सोती है 

उदासियाँ 2 @ तुझमैं

©Mo k sh K an #mokshkan 
#mikyupikyu 
#ruhina 
#Zen 
#उदासियाँ_the_journey

Mo k sh K an

धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 
बदरा ने भी आसमान पर, पहरा खूब लगाया है 

खेतों में सागर लहराए, और सीपों में मोती हैं
और चाँद की आस लगाए, उम्मीदें भी सोती हैं 
आँखों में एक ख़्वाब खिला है, जिसने रात जगाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

रंगी फुहारें धनक धनक सी, आसमान तक जाती हैं
संग संग अपने नमी नमक की, आसमान से लाती हैं
ऐसे आज धरा से उन ने दरया खूब मिलाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

आसमान भी धुला धुला सा, झाँक रहा है कोने से 
रोक सका है कौन भला फिर, ख़ुदा किसी को बोने से 
खुली हथेली पर बरगद आशिक़ ने खूब लगाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

नदी नदी एक राह चली है, जो सागर तक ज़ाहिर है 
चल पाए पानी पर सरपट, कौन मलंग जो माहिर है 
तकलीदों के पैराहन ने पैरों का बोझ बढ़ाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है

उदासियाँ @ धानी धूप

©Mo k sh K an
  धानी धूप
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Mo k sh K an

सहर सजी सी आई है, रंग सावन के लाई है 
बदरा ने रिमझीम बूंदों की फिर से झरी लगाई है 
सहर सजी सी आई है, रंग सावन के लाई है 

जो ऊसर था आज हरा है, उम्मीदों का बाँध भरा है 
मोरों के संग पैर थिरकती देखो देखो आज धरा है 
सब्ज रंग की धूप खिली है, हरी हरी परछाई है 
सहर सजी सी आई है, रंग सावन के लाई है 

हवा साज से हामिल है, संग कोयल भी शामिल है
बेबाक़ गुलों से लदी बूटियाँ धनक धनक सी क़ामिल है 
खिड़की जो गुमसुम गुपचुप थी, बेलों ने आज सजाई है
सहर सजी सी आई है, रंग सावन के लाई है 

मलंग सा फिरता पानी है, उसका रंग रवानी है 
उसकी सीरत, उसकी ज़ुर्रत, आख़िर किसने जानी है 
चट्टानों के सीने पर भी उसकी लिखी लिखाई है 
सहर सजी सी आई है, रंग सावन के लाई है 

तू भी बह चल, दरिया हो जा, पार उफ़क़ तो करना है 
जी कर फिर से जिंदा हो जा, एक दिन सबको मरना है 
पैगम्बर भी कई हुए हैं, सबने रीत निभाई है
सहर सजी सी आई है, रंग सावन के लाई है

उदासियाँ @ सावन

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