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Best तृण Shayari, Status, Quotes, Stories

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REETA LAKRA

एक तिनके का भले ही कोई महत्व नहीं होता; पर जब कई तिनके मिल जाते हैं तो एक आशियां, एक दुनिया बस जाती है। #तृण original yreeta-lakra-9mba

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तिनका 
सूखी घास का छोटा सा टुकड़ा ; तृण कहलाए, तिनका कहलाए ।
छप्पर जो छाए घर पूरा करे ; अंधेरा छाए जो आँख में पड़े, 
भले खुद का अस्तित्व नहीं ; पर बना देता है आसरा, 
हर तिनके में खुशी का अंश ; हर तिनके में परिश्रम का हिस्सा, 
तिनके से तिनका मिला तो ; बन जाते हैं आशियाने अनेकाकार, 
कोई लंबा, कोई चौड़ा - गोल, कोई टोकरा, कोई सुराहीदार, 
इनमें नहीं कोई नौकर, नहीं कोई आया, उड़ने को रहना पड़ता हरदम तत्पर ; जब भी समय आया, 
पंछी ही नहीं इंसान भी तिनका तिनका जमा करता आया। 
पंछी तो चहकते रहते, पर चहकना न जाना कोई इंसान।
११६/३६५@२०२१  एक तिनके का भले ही कोई महत्व नहीं होता; पर जब कई तिनके मिल जाते हैं तो एक आशियां, एक दुनिया बस जाती है। #तृण original yreeta-lakra-9mba

Mahendra Joshi

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मेरे संघर्ष की कहानी कठिन दुपहरी में तृण तृण
मैंने    सहेज    समेटा
कर भावी जीवन की चिंता
मैं नीड़ बना कर बैठा .
कर दिया नष्ट, क्षण भर में
कह कर दंभी ने कूड़ा
श्रम विगलित इस तन पर
तरस न कोई खाता .
मेरे अंतर की व्यथा गहन
कोई न देख पाता  ।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 13 - हृदय परिवर्तन 'मैडम! यह मेरा उपहार है - एक हिंसक डाकू का उपहार!' मैडम ने आगन्तुक के हाथ से पत्र लेकर पढा। 'मैं कृतज्ञ होऊंगा, यदि इसे आप स्वीकार कर लेंगी।' चर दोनों हाथों में एक अत्यन्त कोमल, भारी बहुमूल्य कम्बल लिये, हाथ आगे फैलाये, मस्तक झुकाये खड़ा था। 'मैं इसे स्वीकार करूंगी।' एक क्षण रुककर मैडम ने स्वतः कहा। उनका प्राइवेट सेक्रेटरी पास ही खड़ा था और मैडम ने उसकी ओर पत्र बढ़ा दिया था। 'तुम अपने स्वामी से कहना, मैंने उनका उपहार स्

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
13 - हृदय परिवर्तन

'मैडम! यह मेरा उपहार है - एक हिंसक डाकू का उपहार!' मैडम ने आगन्तुक के हाथ से पत्र लेकर पढा। 'मैं कृतज्ञ होऊंगा, यदि इसे आप स्वीकार कर लेंगी।' चर दोनों हाथों में एक अत्यन्त कोमल, भारी बहुमूल्य कम्बल लिये, हाथ आगे फैलाये, मस्तक झुकाये खड़ा था।

'मैं इसे स्वीकार करूंगी।' एक क्षण रुककर मैडम ने स्वतः कहा। उनका प्राइवेट सेक्रेटरी पास ही खड़ा था और मैडम ने उसकी ओर पत्र बढ़ा दिया था। 'तुम अपने स्वामी से कहना, मैंने उनका उपहार स्

-अधुरी दास्ताँ

ए खुशियो के सौदागर
खरीदकर नई खुशियां खुश तो तुम भी नही
कहां मिला होगा मुझ सा पागलपन
कहां से लाओगी मेरे सब अल्हड़ रंग
कुछ खाली खाली फीकी सी संग संग
सहेजकर लूटी दुनियां खुश तो तुम भी नही ।
कैसे बेमोल ही बिक गया दिल कुंदन
कैसे लगा दी बोली कर पत्थर सा मन
बिखरे महल के चुनकर तुमने तृण तृण
बनाकर फिर कुटिया खुश तो तुम भी नही ।
बेबस खामोश सी फकीरी का आलम
गाता बजाता अपनी ही धुन मेरा मन
क्या खोया क्या पा लिया कर तू चिंतन
मिटाकर खुद की हस्तियां खुश तो तुम भी नही ।
ए खुशियो के सौदागर
खरीदकर नई खुशियां खुश तो तुम भी नही ।।

--"अधुरी दास्ताँ" #nojoto
#nojotohindi
#love
#life
#poetry

NARPAT SINGH

प्यासी धरती करे पुकार

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❄ विधा -गीत

प्यासी  धरती  करे   पुकार
क्यों  तरसाओं मेघ मल्हार

सूखे  नदी    कूप     तालाब
कितना सहे और  आफ़ताब
काका सूरज होता   बदनाम
तरु अश्क बहाये सुबह शाम
कली खिले  ना  ही  कचनार
प्यासी ......(1)

हलधर होता  चिंतित  आज
मौन मंडराये   बादल   राज
झमाझम होगी  कब बौछार
जीव जंतु बेचारे सब लाचार
पानी बिन मची है हाहाकार
प्यासी......(2)

मोर पपीहे व्याकुल दिन रात
सूख गये तृण तृण और पात
तेज ताप से जन- जन बेहाल
छोड़ गऊयें बेसुध हुए गोपाल
इन्द्र  करो  अब  तुम उपकार
प्यासी.....(3)

✍एन एस गोहिल
गौरड़िया(बाड़मेर)राज
#साहित्य_सागर प्यासी धरती करे पुकार

Aman Rajpurohit

कृष्ण-प्रेम का जोगी 'अमन'....

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"कृष्ण-प्रेम का जोगी अमन....."
सपनों की इक गठरी को हमने,तेरे दामन खोला है।
गांव गली घर-बार छोड़ के ,'कृष्ण' नाम से नाता जोड़ा है ।।

बांसुरी की धुन की तरह ह्रदय घरौंदे में तुम रीस आये,
अमन क्या जाने ये प्रेम-रीत, मन दर्पन क्यों तोड़ा है।

टूट गये अनुबन्ध प्रीत के, नैनों में है ना वो चितवन।
ये 'कृष्ण' दिवानों का कारवां हमने,बृज की गलियों में मोड़ा है।।

तृण-तृण बिखरे प्यास , चलें जग में विष-भरी हवायें।  
शबनम का क़तरा ऐसे में ,बन जाता एक शोला है।।

इस नीरस जमाने से दूर, 'राधा के श्याम' तुझे दिल का बुलावा है।
कृष्ण-प्रेम का जोगी 'अमन', सब-कुछ तेरे आँगन छोड़ा है।
          अमन....( स्वरचित, स्वतंत्र मौलिक रचना) #NojotoQuote कृष्ण-प्रेम का जोगी 'अमन'....

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 25 - रूठने की बात कन्हाई कभी-कभी हठ करने लगता है। कभी ऐसी हठ करता है कि किसी की सुनता ही नहीं। कोई इसके सुख की, इसके मन की बात हो तो इसकी हठ मान भी ली जाए, किन्तु यह भी कोई बात है कि यह आज हठ पर उतर आया है कि पुलिन पर खेलेगा। ग्रीष्म ऋतु है और यहाँ पुलिन पर छाया है नहीं। क्या हुआ कि मेघ आकाश में छत्र बने आतप को रोकते हैं, किन्तु क्या मेघ रहने से ही धूप की उष्णता पूरी रूक जाती है? क्या इसी से पुलिन रेणुका उष्ण नहीं होगी? गोचारण के लिए वन में आकर शीतल पुलिन पर क्रीडा हो चुकी। स्न

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|| श्री हरि: ||
25 - रूठने की बात

कन्हाई कभी-कभी हठ करने लगता है। कभी ऐसी हठ करता है कि किसी की सुनता ही नहीं। कोई इसके सुख की, इसके मन की बात हो तो इसकी हठ मान भी ली जाए, किन्तु यह भी कोई बात है कि यह आज हठ पर उतर आया है कि पुलिन पर खेलेगा। ग्रीष्म ऋतु है और यहाँ पुलिन पर छाया है नहीं। क्या हुआ कि मेघ आकाश में छत्र बने आतप को रोकते हैं, किन्तु क्या मेघ रहने से ही धूप की उष्णता पूरी रूक जाती है? क्या इसी से पुलिन रेणुका उष्ण नहीं होगी?

गोचारण के लिए वन में आकर शीतल पुलिन पर क्रीडा हो चुकी। स्न

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 21 - मुझे ढूंढो लुका-छिपी का खेल जब खेला जाय, कन्हाई समझ ही नहीं पाता कि उसे छिपे रहना चाहिए और ढूंढने वाले से बोलना नहीं चाहिए। यह तो छिपने के स्थान से निकलकर पुकारेगा - 'मुझे ढूंढ।' श्रुतियों और योगीन्द्र-मुनीन्द्र युग-युग से ढूँढते होंगे इसे और समस्त साधकों का यही अन्वेष्य होगा, यह भिन्न बात है - उन्हें न मिलता होगा; किन्तु गोपकुमारों के लिए - प्रेमैकप्राण जनों के लिए तो यह कभी छिपा नहीं रहा किं इसे ढूँढा जाय। उनसे इसे छिपना आता ही नहीं है। कन्हाई छुपा ही हो तो कौन ढूँढकर पाव

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।।श्री हरिः।।
21 - मुझे ढूंढो

लुका-छिपी का खेल जब खेला जाय, कन्हाई समझ ही नहीं पाता कि उसे छिपे रहना चाहिए और ढूंढने वाले से बोलना नहीं चाहिए। यह तो छिपने के स्थान से निकलकर पुकारेगा - 'मुझे ढूंढ।'

श्रुतियों और योगीन्द्र-मुनीन्द्र युग-युग से ढूँढते होंगे इसे और समस्त साधकों का यही अन्वेष्य होगा, यह भिन्न बात है - उन्हें न मिलता होगा; किन्तु गोपकुमारों के लिए - प्रेमैकप्राण जनों के लिए तो यह कभी छिपा नहीं रहा किं इसे ढूँढा जाय। उनसे इसे छिपना आता ही नहीं है।

कन्हाई छुपा ही हो तो कौन ढूँढकर पाव

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 18 - वर्षा में श्याम को जल से सहज प्रेम है और वर्षा हो रही हो, तब तो पूछना ही क्या? सभी बालक प्राय: वर्षा में भीगकर स्नान करने के व्यसनी होते हैं। कन्हाई को कोई रोकनेवाला न हो तो यह तो शरत्कालिन वर्षा में भी भीग-भीगकर स्नान करता, उछलता-कूदता फिरे। यह तो पावस की वर्षा है। इसमें तो पशु भी नीचे छिपने नहीं जाते। उन्हें भी भीगने में आनन्द आता है। प्रातःकाल बालक गोचारण के लिए चलते थे, तब आकाश में थोड़े ही मेघ थे; किन्तु पावस में घटा घिरते देर कितनी लगती है। आकाश प्रथम प्रहर बीतते ही मे

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।।श्री हरिः।।
18 - वर्षा में

श्याम को जल से सहज प्रेम है और वर्षा हो रही हो, तब तो पूछना ही क्या? सभी बालक प्राय: वर्षा में भीगकर स्नान करने के व्यसनी होते हैं। कन्हाई को कोई रोकनेवाला न हो तो यह तो शरत्कालिन वर्षा में भी भीग-भीगकर स्नान करता, उछलता-कूदता फिरे। यह तो पावस की वर्षा है। इसमें तो पशु भी नीचे छिपने नहीं जाते। उन्हें भी भीगने में आनन्द आता है।

प्रातःकाल बालक गोचारण के लिए चलते थे, तब आकाश में थोड़े ही मेघ थे; किन्तु पावस में घटा घिरते देर कितनी लगती है। आकाश प्रथम प्रहर बीतते ही मे

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 12 - नृत्यरत ता थेई, ता थेई ता .... त थेई थेई, कन्हाई नाच रहा है। हिल रहा है मयूरपिच्छ मस्तक के ऊपर, हिल रही है अलकें और कुण्डल कपोलों पर ताल दें रहें हैं। कण्ठ में पड़ी मुक्तामाल, घुटनों से नीचे तक लटकती वनमाला के साथ लहरा रही है। फहरा रहा है पीतपट। वक्ष पर कण्ठ के कौस्तुभ की किरणें श्रीवत्स को चमत्कृत करती छहरा-छहरा उठती है।

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|| श्री हरि: || 
12 - नृत्यरत

ता थेई, ता थेई ता .... त थेई थेई, कन्हाई नाच रहा है।

हिल रहा है मयूरपिच्छ मस्तक के ऊपर, हिल रही है अलकें और कुण्डल कपोलों पर ताल दें रहें हैं।

कण्ठ में पड़ी मुक्तामाल, घुटनों से नीचे तक लटकती वनमाला के साथ लहरा रही है। फहरा रहा है  पीतपट। वक्ष पर कण्ठ के कौस्तुभ की किरणें श्रीवत्स को चमत्कृत करती छहरा-छहरा उठती है।
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